बुजुर्गों का कहा अर आंवले का खाया देर तै स्वाद दिया करै।
ग़रीब की जोरू सब की भाब्बी अर अमीर की जोरू सब की दाद्दी।
सु सु करने तै बढ़िया है सुद्दा सुसरी कह दो।
तीन चीज़ कभी अधूरा नी छोडनी चहिये अन्नी वे फिर तै उभर जा – आग, करज अर मरज।
घर तै बाहर दो चीज़ भोत काम आवें – रोट्टी जो तमने खा ली अर पैसा जो थारी जेम मैं।
चीकणी तलवार उसै भींत पे दे मार – सिणक।
घोड़े वाले घोड़े वाले चल बटिया, पूँछ उठा कै दे लठिया।
कोस चली नी दाद्दा पिसाई।
आदमी कू धर कै, कर कै, दे कै, ले कै सोना चहिये।धर कै धोरै लट्ठ , कर कै दीवा बंद, देकै दरवाज्जे की कुण्डी अर ले कै राम का नाम।
जुत्ते अर बिस्तर – ये दोनों चिज्जें झाड़ कैई काम मैं लेनी चहियें।
काठ की हांड़ी चूल्हे पै बस एक बर ही चढ़ा करै।
टके की हांड़ी गयी तो गयी पर कुतिया की ज़ात पिछाणी गयी।
गा न बच्छी, नींद आवै अच्छी।
घणा छाणने वाला गादला ही पिया करै।
पटवारी की पट-पट बोल्लै कलम दवात बस्ते मैं डोल्लै।
गुड मैं भे-भे ईंट मारणा।
शकर गंदी बड़ी मंदी, ले ग्ये चोर, पिटी नंदी।
कग्गों के कोस्से डांगर ना मरा करते।
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